नीमच, निप्र। भारतीय जनता पार्टी में बूथ अध्यक्षों के बाद मंडल अध्यक्ष पदों की घोषणाएं हो चुकी है। जिले के सभी 15 मंडलों में नियुक्तियों के बाद अब जिला अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर दावेदार भोपाल तक दौड़ लगा रहे हैं। जिले के नेता अब जिलाध्यक्ष बनने के लिए नीमच से उज्जैन, इंदौर और भोपाल तक आकाओं में शरण में पहुंच रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा में पसरा सन्नाटा संगठन चुनाव के चलते दूर हो गया है।
विधायकों की पसंद से बने मंडल अध्यक्ष
खबर है कि नीमच जिले में संगठन और सत्ता की पटरी लंबे समय से नहीं बैठ पा रही है। मंच पर भले ही संगठन के नेता और पार्टी के सत्ता में बैठने वाले जनप्रतिनिधि कभी कभार एक साथ नजर आते हैं, लेकिन भितरखाने गुटबाजी पार्टी को भारी पड़ रही है। इस बार नवंबर से दिसंबर के पहले पखवाड़े के बीच संगठनात्मक चुनाव के महत बूथ अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष बनाए गए हैं। पार्टी ने पहले उम्र और रायशुमारी के अलावा सक्रिय सदस्य बनाने का क्राइट एरिया भी निर्धारित किया था, लेकिन बाद में सारे कायदों को तोड़ दिया गया और तीनों विधानसभा क्षेत्रों में विधायकगण की पसंद के दावेदारों को मंडल अध्यक्ष बना दिया गया।
यह हैं प्रमुख दावेदार
नीमच जिले में जिला भाजपा अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदारों में वर्तमान जिलाध्यक्ष पवन पाटीदार, पूर्व नपा उपाध्यक्ष महेंद्र भटनागर नीमच, पूर्व युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष राजेंद्र(राजू) नागदा मोड़ी, राकेश जैन पूर्व नपा अध्यक्ष नीमच, अर्जुन सिंह सिसोदिया छायन, विजय बाफना, सुनील कटारिया, विश्वदेव शर्मा, हेमलता धाकड़ को जिला भाजपा अध्यक्ष पद का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। बताया जाता है कि मनासा विधायक अनिरुद्ध माधव मारु अपनी ओर से जिलाध्यक्ष का कोई नाम प्रस्तावित नहीं करना चाहते हैं! जबकि नीमच विधायक की पहली पसंद अर्जुन सिंह हैं! जावद विधायक ओमप्रकाश सखलेचा ने भी अभी पत्ता नहीं खोला है!
यह भी है चर्चा
जिला भाजपा अध्यक्ष पद पर वैसे तो पिछड़ा वर्ग से अध्यक्ष बनाने की अधिक संभावना है,क्योंकि मंडल अध्यक्ष पदों पर अधिकांश सामान्य वर्ग के नेता नियुक्त किए गए हैं। वहीं तीनों विधानसभा क्षेत्र के विधायक भी सामान्य वर्ग से आते हैं। ऐसे में पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व की मांग अधिक है। दूसरी ओर अगर एक नाम पर सहमति नहीं बनती है और अधिक खींचतान हुई तो इसका फायदा महिला दावेदार को मिल सकता है। वैसे भी 33 फीसदी महिलाओं को मौका देने के पार्टी के वादे को निभाने में संगठन अब तक तो कामयाब नहीं हो सका है।
ऐसे नेता को नहीं मिलेगा मौका
उधर खबर है कि पार्टी के जिलाध्यक्ष को लेकर लगभग तैयारी पूरी हो चुकी है। 25 दिसंबर से जिलाध्यक्षों की घोषणा शुरू हो जाएगी। सहमति नहीं बनने की स्थिति में नये साल 2025 के पहले महीने अर्थात 15 जनवरी के पहले नये जिलाध्यक्ष की घोषणा होगी। दिल्ली में हुई बीजेपी संगठन चुनाव की बैठक में इनके चयन का क्राइटेरिया तय हो चुका है। पार्टी के जिलाध्यक्षों के मामले में आयु-सीमा तय की गई है। जिसके तहत 60 साल से अधिक उम्र के नेता जिला अध्यक्ष नहीं बन पाएंगे।
टेक्नीक फ्रेंडली स्ट्रक्चर बनाने की कवायद
बीजेपी ने एमपी के पूरे संगठन को डिजिटलाइज किया है। बूथ समितियों से लेकर मंडल, जिला, संभाग और प्रदेश स्तर तक पूरा सिस्टम डिजिटल है। पार्टी की हर गतिविधि और कार्यक्रम संगठन ऐप के जरिए जनरेट होते हैं। प्रवास से लेकर बैठकों और दौरों की जानकारी भी संगठन ऐप पर ही दर्ज करनी होती हैं। संगठन में बढ़ते आईटी के उपयोग को देखते हुए बीजेपी अब मंडल और जिलाध्यक्षों के चयन में भी तकनीक फ्रेंडली लीडरशिप को प्रमुखता दे रही है।
सहमति बनी तो 12 जिला अध्यक्षों को फिर मौका
बीजेपी के प्रदेश में संगठनात्मक रूप से 60 जिले हैं। इनमें से 12 जिले ऐसे हैं जहां जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को एक साल भी पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में यदि जिले के नेता और पदाधिकारी सहमत हुए तो इन्हें फिर मौका मिल सकता है। हालांकि जिलाध्यक्ष के रिपीट होने पर भी निर्वाचन प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी। यानी सर्वसम्मति से भी जिलाध्यक्ष को रिपीट करने का निर्णय हुआ तो भी निर्विरोध निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।