नीमच। राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले से 30 किमी के लगभग दूरी पर सीतामाता अभ्यारण क्षेत्र में वर्तमान समय मे विख्यात सीतामाता मेला 4 जून से 7 जून तक चलेगा… घनघोर जंगल मे लगने वाले इस मेले मे हजारो श्रद्धालु भाग लेते है और माता सीता जी के दर्शन करते है….ऐसी मान्यता है कि यँहा माता सीता धरती माँ में समाहित हुई ओर इस स्थान से 4 किमी दूर लव कुछ नामक दो कुंड व वाल्मिकी आश्रम भी है जहाँ ठंडे गर्म पानी का अहसास अलग अलग कुंड में होता है….. घनघोर जंगल होने के कारण यहा आपका मोबाइल नेटवर्क शून्य हो जाता है,, खड़ी,ऊंची नीची पहाड़िया,,धुल व पत्थरो से भरे रास्ते व बार बार बीच मे आती सीता नदी अलग ही अहसास करवाती है. पैदल चलना पड़ता है सीतामाता मन्दिर तक क्योंकि वाहन इतनी दूरी पर ही रुकवा लिए जाते है और 4 किमी के लगभग लवकुश कुंड तक चलना पड़ता है…छोटी टेंट वाली दुकाने मेले हेतु यहाँ लगती है । सुबह जल्दी घर से यदि निकले व 5 बजे तक वहाँ पहुँच जाए तो प्रातः 06 बजे आपको दर्शन हो जाएंगे व आप जल्दी रिटर्न घर आ सकते है यदि आप लेट पहुँचे तो शाम 07 बजे गेट बंद हो जाते है जंगल के कारण तो दर्शन अगले दिन सुबह ही करना पड़ेंगे ओर रात्रि विश्राम जंगल मे ही करना पड़ेगा इस हेतु आप ओढ़ने बिछाने की हल्की सामग्री साथ ले जाये जैसे दरी कम्बल आदि कुछ दुकानदार 50 से 100 रु में थाली मे भोजन करवाते है आप या तो वहाँ करे या घर से ले जाये…नहाने हेतु नदी है पेयजल की थोड़ी दिक्कत आती है पर बोतल साथ रखे पानी की व हेंडपंपं ऑप्शन है थोड़ा भारी पानी है पर एडजस्ट करना है….कुल मिलाकर बेहद सस्ती,,ऐतिहासिक,, धार्मिक मान्यता वाली यह यात्रा है आज रविवार है बनाइये प्लान ओर अभी घर से निकले व वाहन ध्यानपूर्वक धीरे व सावधानी से चलाए एक ओर महत्वपूर्ण बात हल्के नार्मल सादे कपड़े पहनकर ही जाए जूते चप्पल थोड़े मजबूत ले जाएं और आनन्द ले सितावाड़ी की इस अदभूत यात्रा का महत्वपूर्ण बात पानी की कमी गर्मी,,हवा न मिलने या ऊंची नीची चढ़ाई के कारण जी घबराना,,चक्कर आना व थकान होना आम बात है तो छोटी बड़ी गोलियां ऑरेंज व लेमन चॉकलेट साथ ले जाये और आनन्द ले।। जय सीताराम।। –राजस्थान के चितौड़गढ़ के बड़ीसादड़ी में स्थित है सीतामाता अभयारण्य( सीता माता वनवास) यहाँ प्रतापगढ़ होकर भी पहुंचा जा सकता है।रास्ता दुर्गम एवं भीषण है।
यही लवकुश का जन्म हुआ।
यही स्थित है वाल्मीकि आश्रम ।
सीतामाता यही धरती में समाहित हुई थी।
रामायण भी वाल्मीकि आश्रम में ही लिखी गयी।
आज यहां फटा हुआ पहाड़, 12 बिगा में फैला हुआ वट वृक्ष जो लवकुश के समय से है जहा लवकुश खेला करते थे। सीता माता जी मंदिर। लव व कुश गरम व ठंडे पानी के सागर, उड़न गिलहरी,5 फिट बड़ा मकड़ जाल,यहा अश्वमेघ घोड़े के लिए युद्ध हुआ।